महासमुन्द: तिहाड़ जेल तक जाने वाले सरायपाली बसना क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी उनके द्वारा किए गए काम आज भी लोगों के जुबान पर है जिसके नाम से निकलती है हर साल पदयात्रा ।
महासमुन्द हेमन्त वैष्णव 9131614309
हम आपको आज छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के स्वतंत्रता सेनानी स्व. जयदेव सतपथी के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्होंने आजादी में अपना बहुमूल्य योगदान दिया था.
उन पर अंग्रेजों का कहर बहुत बरपा लेकिन उन्होंने तिरंगा को झुकने नहीं दिया. महासमुंद जिले के तोषगांव के रहने वाले स्व. जयदेव सतपथी को कौन नहीं जानता, उनके द्वारा किए गए काम आज भी लोगों के जुबान पर है.
उनके नाम से हर साल गांधी पद यात्रा के नाम पर रैलियां निकाल कर लोगो को जागरूक किया जाता है और इस साल 26 सितंबर से
निकलने वाली पद यात्रा 2 अक्टूबर को समापन होगा जिसमे क्षेत्र और गाँव गाँव मे हजारो लोग शामिल होते है ।
स्वतंत्रता सेनानी स्व. जयदेव सतपथी के बेटे विद्या भूषण सतपथी बताते हैं कि 1980 से 1985 तक मैं बाबूजी जयदेव सतपथी के साथ समाचार वाहक के रूप में उनके साथ काम किया. मेरे बाबूजी जयदेव सतपथी एक धर्मपरायण व्यक्ति थे. उनका नैतिक मूल्य महान था. वे अंग्रेजों के शासनकाल में
रायपुर के राजकुमार कॉलेज में शिक्षकीय पद पर पदस्थ थे. राजकुमार कॉलेज में जब जार्ज पंचम विजिट में आया तो सब कोट और टोप में थे. अकेले मेरे बाबूजी जयदेव सतपथी धोती कुर्ता में थे. उनके सहचर्य शिक्षक उनको टोके भी. लेकिन उनके दिमाग में विरोध करने का जुनून था. उन्हें विश्वास था की अंग्रेज यह धोती कुर्ता देखकर जरूर कोई कमेंट करेगा
जार्ज पंचम राजकुमार कॉलेज में आया तो उसके साथ बैठे और जब सब लोग कप में चाय पीने लगे तो पंडित जयदेव सतपथी बस्सी यानी प्लेट में चाय पीने लगे. जिसकी वजह से कांग्रेस को अटपटा लगा और प्रिंसिपल को जार्ज पंचम ने कहा कि यह कौन नॉनसेंस है. फिर प्रिंसिपल ने उनपर कार्रवाई करने अलग कमरे में बुलाया. सतपथी जी दबंग आवाज में बोले कि मेरे ऊपर आप कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि मैं सुबह 11 बजे से ही इस्तीफा दे चुका हूं. कहने का तात्पर्य अंग्रेजों का विरोध करने स्व जयदेव सतपथी ने राजकुमार कॉलेज की सेवा छोड़ दी थी।
उसके पश्चात 1940 – 42 में जनपद शासन के समय आरंग में शिक्षक बने. आरंग में 1942 में लोगों को लोगों से जोड़ने के लिए एक पदयात्रा प्रारंभ किए. इस दौरान लोगों को जाग्रत करते थे. अंग्रेजों के दुर्नीति के बारे में बताते थे. अंग्रेज उस समय में मवेशी टैक्स लगाते थे उस टैक्स के विरोध में लोगों को जागरूक करते थे. यह सब बातें जब लक्ष्मी नारायण महंत और पंडित रविशंकर शुक्ल को पता चला की एक व्यक्ति सेवा में रहते हुए लोगों को जागरूक करने के लिए पदयात्रा कर रहा है. फिर लक्ष्मी नारायण महंत और पंडित रविशंकर शुक्ल ने पंडित जयदेव सतपथी से संपर्क किया.
आगे बताया कि जयदेव सतपथी रायपुर गए और वहां उत्थान पत्रिका के सहसंपादक बने. अंग्रेजों को पंडित जयदेव सतपथी का जनजागरण अभियान रास नहीं आया. और पंडित जयदेव सतपथी को स्वतंत्रता संग्राम के आरोप में अंग्रेज जेल में डालने लगे. पंडित जयदेव सतपथी जब नागपुर जेल में थे तो वे वहां भगवत गीता में प्रवचन करते थे. गायत्री परिवार हरिद्वार के संस्थापक प्रवर्तक श्रीराम आचार्य रामायण में प्रवचन करते थे. जेल में जब पंडित जयदेव सतपथी अरबी की सब्जी और लोहे की थाली का विरोध किए तब उन्हें तिहाड़ जेल ट्रांसफर किया गया. पंडित जयदेव सतपथी तिहाड़ जेल जाते हुए श्रीराम आचार्य के कानों में स्वयं के द्वारा संचालित कर रहे सरायपाली के विद्यालय का संचालन करने जवाबदारी सौप गए थे. इसके बाद गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम आचार्य सरायपाली में पंडित जयदेव सतपथी द्वारा चलाए जा रहे विद्यालय में शिक्षकीय कार्य किए. पंडित जयदेव सतपथी अंग्रेजों का साहित्य, सत्याग्रह और उग्र रूप में बहुत विरोध किया ।