Thursday, November 21, 2024
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देवदरहा नाम कैसे पड़ा क्या है वह शक्ति की रायफल से गोली भी इस पार से उस पार नही जा पाया , बैल की मूर्ति को जिंदा समझकर रात्रि में शेर ने पंजा भी मारा ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर छोटी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच ।

देवदरहा नाम कैसे पड़ा क्या है वह शक्ति की रायफल से गोली भी इस पार से उस पार नही जा पाया , बैल की मूर्ति को जिंदा समझकर रात्रि में शेर ने पंजा भी मारा ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर छोटी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच ।

ओडीसा छत्तीसगढ़ / हेमन्त वैष्णव 9131614309

छत्तीसगढ़ से लगे ओडीसा बॉर्डर पर सरायपाली पदमपुर मार्ग से निकट यह
देवदरहा नामक स्थल लगा हुवा है आस पास के हजारो ग्रामीणों का समय समय पर आना जाना लगा रहता है जंगलों से घिरे होने के कारण ज्यादातर लोग यहां पिकनिक मनाने आते है और कई लोग रहस्य जानने के लिए ही आते है बता दें कि इस देवदरहा नामक जगह की किस्से कहानिया बड़ा ही रोमांचक है और दिल चस्प है देव दरहा से जुड़ी कई कहानियां क्षेत्रों में प्रचलित है जिसका कई सबूत साक्ष अभी मौजूद है और आप भी एक चीज का परीक्षण कर सकते है ।

बता दें कि यहां दहरे के ठीक उपर लघु जल प्रपात है जिसे देखकर हम मिनी भेड़ाघाट कहते हैं यहां करीब 25 फीट उपर से दरहे में गिरने से सफेद धुंध बनती है। आसपास के पत्थरों में बैठकर जल से उठते फव्वारे से हल्की बरसाती फुहार का आनंद मिलता है। चारों तरफ चटटा्न ही चटटान हैं इनका रंग मटमैला गुलाबी है। पानी के तेज से घीस घीस कर चट्टाने गोल और कोमल दिखाई देती है फूलों की तरह इन्हें भी छूने का मन करता है इन्हें भी यहां आकर्षण माना जाता है।

बरसात में यहां पानी का बहाव तेज होता है और गर्मी में यहां एक ठहराव सा नजर आता है। इतने सुंदर पर्यटन स्थल की उपेक्षित क्यों है यह आश्चर्य की बात है।

ऐतिहासिक पंचमुखी शिव पार्वती मंदिर

झरना व नदी के किनारे पहाड़ी में एक तरफ मंदिर है जिसमें पंचमुखी शिव जी पार्वती के साथ स्थापित है जिसे पदमपुर के जमींदार नटवरसिंह बरिहा द्वारा 1922 में बनवाया गया था। इसके बरामदे में संगमरमर के नंदी बैल स्थापित है। जिसका मुख मंदिर के द्वार की ओर है।

 

बैल इतना सजीव लगता है कि सालों पहले इसे जिंदा बैल समझकर रात्रि में शेर ने इस पर पंजा भी मारा था जिसका निसान आज भी मौजूद है ।

मंदिर के बाहरी दीवार में विभिन्न देवी देवताओं की मूर्ति भी लगी है। प्रति वर्ष शिवरात्रि में यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं का आना होता है। इस अवसर पर यहां सराईपाली और पदमपुर के कुछ श्रद्धालुओं द्वारा भण्डारे का भी आयोजन किया जाता है।

छोटी-छोटी गुफाएं भूलभुलैया

इन पहाड़ियों में छोटी-छोटी गुफाएं एवं भूलभुलैया होने की बात ग्रामीण बताते हैं बताया जाता है कि कई सालों पहले दरहा में कुछ लोग मछली पकड़ रहे थे और एनसीसी के छात्रों को देख पुलिस वाले समझकर मछुआरे कहीं लुप्त हो गए उन्हें एनसीसी के छात्र नहीं खोज पाए क्योंकि वे पहाड़ी की भूल भुलैया में छुप गए थे। कहा तो यह भी जाता है राजा युद्ध के दौरान अपनी सुरक्षा के लिए इसे उपयोग करता था।

पहले यहां नक्सलियों ने डेरा रहता था हालांकि अब तक किसी भी पर्यटक को परेशान किए जाने की बात सामने नहीं आई है मगर साम 5-6 बजे के बाद कोई भी इस तरफ जाने से डरता है।

हालांकि इसके पिछले यह तर्क भी है वहां जंगली जीव जंतु भी निकलते हैं।

क्यों नाम पड़ा देवदरहा

गहराई को क्षेत्रीय भाषा में दरहा कहते हैं। दरहा की गहराई को अनेक गोताखोर नापने में असफल रहे। ग्रामीणों की मान्यता है इस दरहा में राजा का खजाना छिपा है। दरहे के उपरी कटाव वाली पहाड़ी से सामने वाली पहाड़ी पास नजर आती है मगर इस कोने से उस कोने कुछ भी फेंकने पर वह दरहे में ही जाकर गिरता है। बताया जाता है कि वर्षों पूर्व एनसीसी कैंप के विद्यार्थी भी रायफल से गोली इस पार से उस पार मारने का प्रयास किए मगर असफल रहे। मान्यता है की दरहे में देव शक्ति है जो भी वस्तु इसके उपर से गुजरती है वह उसे खींच लेता है। यह शोध का विषय है कि वहां पर गुरूत्वाकर्षण शक्ति कहीं ज्यादा तो नही है, स्थानीय लोगों का मानना है निश्चय ही ज्यादा है। गहरे दरहा उसमें गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण इसका नाम देवदरहा पड़ा।

किंवदंती है कि एक लकड्हारा इस दरहा के किनारे लकड़ी काट रहा था उसकी कुल्हाड़ी छुट कर दरहे में गिर गई वह दुखी होकर देवताओं को कोसने लगा तब दरहा से देव प्रकट हुए उन्होने लकड़हारा को सोने फिर चांदी की कुल्हाड़ी देनी चाही लेकिन वह लोभ न करते हुए अपनी ही कुल्हाड़ी लेने पर अड़ा रहा। तक देवता ने प्रसन्न होकर उसकी कुल्हाड़ी के साथ सोने चांदी की कुल्हाड़ी भी दे दी। तब से इसे देवदरहा के नाम से ही माना जाने लगा।

सराईपाली. पदमपुर रोड पर स्थित झरना और यहां के मनोरम दृश्य के कारण लोग यहां पिकनिक मनाने पहुंचते है ।


पदमपुर रोड़ पर सिरपुर के पास ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर छोटी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित नदी और उसमें गिरता झरना देखकर सहज ही मन कह उठता है, यह है मिनी भेड़ाघाट। तीन तरफ पहाड़ियों से घिरे झरने का शांत बहता जल, छांव के नाम पर छिटके-छिटके वृक्ष और जमीन पर पसरी हुई सुहानी धूप।

पथरीली जगह होने के कारण घने वृक्षों का अभाव है, फिर भी प्राकृतिक छांव पिकनिक मनाने वालों को मिल ही जाती है। इन पहाड़ियों के नीचे उतरकर बाई ओर पहाड़ी कटाव के छांव में बैठकर बहाव के हरित जल को देखना उस पर बहकर आने वाली शीतल वायु मन को सुखद करती है। झरने का उफनता गिरता जल बहकर ठहर सा जाता है। ऐसा लगता है जैसे तूफान को कोई ठोस आधार मिल गया है और जल का संपूर्ण क्रोध शांत झील में समाहित हो गया है।

 

जाने के लिए सुगम

बस मार्ग पर एनएच 53 में सराईपाली से पदमपुर रोड़ पर मात्र 21 किमी की दूरी सराईपाली तक बस में आकर यहां से टेक्सी द्वारा जाया जा सकता है लेकिन वहां रूकने के लिए कोई जगह नही सराईपाली ठहरने के लिए उत्तम रहेगा। दूसरी तरफ पदमपुर ओड़िसा से भी 21 किमी की दूरी पर स्थित मगर लखमरा नदी के कारण बारहमहिनों आवागमन संभव नहीं। गर्मी के दिनों में उधर से भी पहुंचा जा सकता है।

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