ये जो तस्वीर दो भाइयों के बीच बंटवारे के बाद की बनी हुई तस्वीर है.
बाप-दादा के घर की देहली को जिस तरह बांटा गया है,
वह हर गांव-घर की असलियत को भी दर्शाता है!!
दरअसल आज के समय मे हम गांव के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं! जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, ब्याह शादी के झगड़े, दीवार के केस, आपसी मनमुटाव ओर जो कोई इज सबसे बचा उन्हे चुनावी रंजिशों ने खोखला कर दिया है!
अब गांव वो नहीं रहे कि बस में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे। दो चार थप्पड गलती पर किसी बुजुर्ग या ताऊ ने टेक दिए तो झगड़ा नहीं बनता था तब। लेकिन अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं, गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हैं!
हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे, इतनी नफरत कहां से आई है लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है,
गांवों में कितने मर्डर होते हैं! कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है, इसकी कल्पना भी भयावह है।
संयुक्त परिवार अब गांवों में एक आध ही हैं, लस्सी-दूध जगह वहां भी डयू कोका पिलाई जाने लगी है, बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था। आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओ से भी अब दूर आ गए हैं..अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे…!!
एक दिन यूं ही बातचीत में एक मित्र ने कहा कि जितना हम पढे हैं, दरअसल हम उतने ही बेईमान बने हैं, गहराई से सोचें तो ये बात सही लगती है कि पढे लिखे लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और ये बात समाज को तोड रही है।
लेख साभार सोसल मीडिया