महासमुंद -/ राजा और अंग्रेजो में भयंकर युद्ध अंतिम राजा के प्राणांत के बाद 7 रानियों ने मर्यादा की रक्षा के लिए घोड़ा धार में कूद गए पढ़िए शिशुपाल पर्वत पर जौहर का इतिहास जान खड़े हो जाएंगे आपके रोंगटे,
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जीले के सरायपाली विधानसभा अंतर्गत आने वाले ( बूढ़ा डोंगर ) सिसुपाल पर्वत को आज पिकनिक स्पॉट और ट्रैकिंग पॉइंट के बारे में तो सब जानते है लेकिन बहुत ही कम ही लोग है जो उस सिसुपाल की गौरवशैलीइतिहास को जानते है , कुछ दिनों पहले महाजनपद न्यूज़ मे
गढफुलझर के श्रापित महल और राजा रानियों को जलमग्न होने की किवदंती का प्रकाशन किया गया था जिसमे आखिर राजमहल और राजारानी कैसे श्रापित हो गए थे क्या है वह कारण अगला भाग में विस्तृत जानकारी के साथ
वर्तमान में सिसुपाल पर्वत एक पिकनिक स्पॉट और ट्रैकिंग पॉइंट बनते जा रहा है लेकिन कभी यहाँ एक गौरवशाली इतिहास घटित हुवा है जो बहुत कम लोग इन घटनाओं के बारे में जानते है अभी यही बात सामने आता है कि राजा रानियों ने अंग्रेजो द्वारा आक्रमण के बाद घेरे जाने के बाद सिसुपाल पर्वत के ऊपर से घोड़ो में सवार होकर घोड़ो के आंख में पट्टी बांधकर सिसुपाल पर्वत से छलांग लगा दिए थे और इसी का नाम घोड़ा धार पड़ा लेकिन ऐसा नही है ,
भैना राजाओं का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है अक्सर सोसल मीडिया प्रिंट और वेबसाइटों में पढ़ने मिल रहा है कि राजा सिसुपाल और रानी को द्वारा अंग्रेजो द्वारा घेर लिए जाने पर पर्वत से घोड़ो के आंख में पट्टी बांधकर कूद गए थे लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नही बता दें कि सिसुपाल पर्वत पर अंग्रेजो द्वारा विजय पाना इतना भी आसान नही था ।
सिसुपाल पर्वत की ऊंचाई तल से हजारो फिट ऊपर है जहां तक आज पिकनिक स्पॉट है लेकिन उसके ऊपर और कई किलोमीटर क्षेत्र में सिसुपाल पर्वत फैला जो राजाओं और सैनिकों के लिए एक अभेद किला था और किले में सस्त्र और सैनिक और इस पर्वत में भी गुप्त सुरंगे और रास्ते थे राजा और रानियां भाग भी सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया अंग्रेजी सल्तनत द्वारा आक्रमण के बाद जब अंतिम राजा और सैनिकों द्वारा अंग्रेजो के मध्य भयंकर लड़ाई लड़ा गया था युद्ध मे अंतिम राजा के मारे जाने के बाद ही 7 रानियों ने मर्यादा की रक्षा के लिए 1 हजार फीट की चोटी से घोड़ो पर पट्टी बांधकर छलांग लगा दिए और इसी का नाम घोड़ा धार पड़ा ।
सिसुपाल पर्वत की 7 रानियों द्वारा जौहर किया गया या सतीप्रथा
महाजनपद न्यूज़ ने कुछ और जानकारी इक्कट्ठा किया तो छग शासन द्वारा भैना जनजातीय का मानवशास्त्रीय अध्ययन आदिमजाति अनुसंधान क्षेत्रीय इकाई बिलासपुर में उल्लेख किया गया है की
भानुवंश प्रकाश सहिता के अनुसार मितध्वज मिथिला का राजा
के राजा कृतध्वज के माहामंत्री थे मितध्वज के पुत्र खण्डिक माहामंत्री बने जब इसी क्रम में मिथिला के राजा कृति देव हुए
उसने इस परम्परा को बदल दिया जिसके बाद माहामंत्री पद के उत्तराधिकारी देवमणि ने मिथिला राज दरबार का ग्याग कर दिया वे अपनी पत्नी भानु मति के साथ अमर कंटक के पुण्य क्षेत्र सोड़कुण्ड आ गए
भैना जाती फुलझर राज के प्राचीनराजवंश रहा है ,
महादेव के पुत्र जोहान साय के पुत्र मंडल नाग वंश के पुत्र का नाम जगतसाय था जो मानिकपुर में रहते थे यही जगतसाय रतनपुर के राजा जाजल्लदेव के सेनापति थे जिसने जाजल्लदेव
के राज्य की सीमा का विस्तार किया था एवं भैना राज की नींव डाली थी भानुवंश प्रकाश संहिता के अनुसार भैना जाति में बहुत से राजा प्रमुख हुए थे जो शुद्ध वैदिक आचरण करते थे दान पुण्य करते थे कुछने वैदिक आचरण के विपरीत कार्य किया था सोनसाय राजा धार्मिक विचार के थे
भैना जाति का इतिहास पूर्व से ही गौरवपूर्ण रहा है
भैनो के पूर्वजों में भानुमान के कार्य कार्य में कुछ विकृति का उल्लेख मिलता है किंतु उनकी पत्नी चंद्रकुवरी के कारण उनमें सद विचारों का समावेश हुआ भानुमान अपने कृत्यों से पश्चाताप करने लगे उन्हें अपने पुत्रों की दशा देखकर बहुत चिंता हुई उनके पुत्रों में मात्र सोनसाय योग्य निकले शेष तीनों पुत्र मदिरा मास में लिप्त थे कालांतर में भैना जाती भानुमान के नाम से भानुवंशी कहने कहलाने लगे
भैना जाती का प्राचीन इतिहास विशेषकर फुलझर में गौरावपूर्व रहा है यह जाती गोंड़ राज के पूर्व धमतरी बिलासपुर पेंड्रा बिलाईगढ़ रायगढ़ सारँगढ़ फुलझर भटगांव आदि राज्यो में राज किया इनका शासन काल फुलझर राज्य में लगातार 18 पीढ़ियों तक था
भैना इतिहास जौहर या सतीप्रथा
किवदंतियों के अनुसार बूढा डोंगर सिसुपाल पर्वत पर फुलझर के अंतिम प्रमुख राजा की सात रानियां थी राजा के युद्ध मे प्राणांत होने पर उनकी रॉनियो ने भयंकर घोड़ा धार झरने से कूदकर सती धर्म का पालन किया था वर्तमान में प्राचीन गढ केना में उक्त ग्राम के मध्य सती दाई नामक एक देवी की सामान्य प्रस्तर खण्ड के रूप में पूजा की जाती है उक्त सती दाई भी पूर्व कालीन किसी सामन्त राजा की रानी रही होगी जिसने अपनी पति के मृत्यु के पश्चात सती धर्म का पालन किया होगा ।
पिरदा गढ में हीराचंद भैना की कथा विस्वाश घात के कारण हत्या
आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के जानकारी के अनुसार पिरदा गढ में हीराचंद भैना राजा सुनने को मिलती है जिनकी रानी परम सुंदरी थी गोंड़ आक्रमण के फलस्वरूप विश्वासघात के कारण उनकी हत्या हो गई किंतु रानी का कोई उल्लेख सुनने को नही मिलता सम्भवत रानी ने भी वंश परम्परा के अनुसार सती धर्म का पालन किया होगा ग्राम भोथल डीह में दहना पाट नामक एक देवी की सामान्य स्थापना है जिनकी पूजा ग्राम वासियों के द्वारा की जाती है इसी प्रकार ग्राम तोरेसिंहा में जगदलेनपाट देवी की प्रमुखता से पूजा की जाती है सम्भवतः ये महान महिलाएं भैना कालीन शाशन में वैभवर्ण गरिमामयि स्थान रखती थी जिससे लोग उन्हें देवी के रूप में मानते आ रहे है पूर्व काल मे राजा रानी को भगवान के रूप में मानने की परंपरा थी लोग उन्हें पाट प्रमुख के रूप में मानते थे पूर्व में बलिदान के रूप में बकरों की बलि दी जाती थी क्योंकि उक्त कालखण्डों में बलिदान को सम्मान के रूप में माना जाता है ।
चुकी उस समय कोई राजा हार जाता था तो रानियों को दुर्व्यवहार एवं कब्जे में लेकर मुगल शासक करते थे अपमान बताया जाता है कि जब राजा खास तौर पर मुगल शासक युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात किले में प्रवेश करते थे तो वह महारानी के साथ ही सुंदर सुंदर औरतों पर अपना कब्जा चाहते थे। इसके लिए वह महिलाओं का अपमान भी किया करते थे। लेकिन इसके पूर्व वह सभी स्त्रियां या तो जहर खाकर प्राण दे देती थी या फिर जौहर कर लेती थी।
करते थे क्रूरता
इतिहास में ऐसे भी हमलावर मुगल शासक हुए हैं जिन्होंने विजय के पश्चात जब किले में कब्जा किया तो और रानी को मरा हुआ पानी पर गुस्से से पागल हो जाते थे। कई बार तो यह भी बताया गया है कि उस मृत शरीर के साथ क्रूरता की जाती थी।
कई बार मृत शरीर के शरीर के अंगों को काट डाला जाता था। यह तब होता था जब महिलाएं तथा महारानियां जहर खाकर अपना प्राण देती थी। ऐसे में महिलाओं ने अपने शरीर को समूल पंचतत्व में विलीन कर देने जौहर करने लगी।
लेकिन ये भी मानना जरूरी है कि राजघराने की रानियों का जौहर भारतवर्ष में सैकड़ों साल पहले की सती प्रथा की याद दिलाता है। हालांकि जौहर और सती प्रथा एक-दूसरे से जरा भी मेल नहीं खाते। लोग सती प्रथा को सिर्फ सतही तौर पर जानते हैं लेकिन वो इस प्रथा के पीछे छिपे पूरे तथ्य से अनभिज्ञ हैं। पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता के साथ जलना सती प्रथा है और दुश्मनों के चंगुल में फंसे अपने वीर पतियों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए आत्मदाह करना जौहर है। दोनों को समझने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलटने की जरूरत है।
आज आम लोग घोड़ा धार तक ही पहुंच पाते है बताया जाता है कि सिसुपाल पर्वत के ऊपर में आज भी राजाओं का किला और सस्त्रागार है साथ ही साथ दंड देने का जगह भी जीर्ण शीर्ण अवस्था मे देखा जा सकता है इसके साथ ही कई गुप्त सुरंगे होने की बात बताया जाता है
शिव मंदिर
यहाँ एक प्राचीन शिव मंदिर हैं। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के बाहर आज भी मकर संक्रांति के अवसर पर विशाल मेला लगता है। हज़ारों की संख्या में श्रृद्धालु यहां आते हैं। कहते हैं इस सूर्यमुखी मंदिर में पहले हनुमान सिक्का जड़ा हुआ था। जिसे बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता था। लेकिन अब यह सिक्का यहां से गायब है।
बताते हैं कि राजा शिशुपाल की दो रानियां थीं। दोनों के अलग-अलग सरोवर यानि तालाब थे जो अब भी हैं। वहीं राजा की कचहरी के भग्नावशेष भी हैं, जहां राजा प्रजा से मिला करते थे।
सुरंग में था शस्त्रागार
यहाँ एक बहुत लंबी सुरंग है। नदी की रेत ने अब इस सुरंग का मार्ग अवरुद्ध कर दिया है लेकिन स्थानीय निवासी बताते हैं कि सुरंग के भीतर अब भी राजा के अस्त्र-शस्त्र पड़े हुए हैं।
विशाल गुफा
यहाँ पर्वत पर एक बहुत गहरी गुफा है। गुफा इतनी विशाल है कि सैकड़ों लोग एक साथ विश्राम करने के लिए भीतर बैठ सकते हैं।
पंचमुखी हनुमान मंदिर
कुछ सौ मीटर की चढ़ाई करने के बाद आपको एक छोटा सा हनुमान मंदिर मिलेगा। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस पंचमुखी हनुमान मंदिर तक पहुंचकर लोग थोड़ा सुस्ता सकें इसके लिए ग्रामीणों ने बड़ी मेहनत की है। वे जब मंदिर के मेले में जाते हैं तो एक थैले में रेत और एकाध ईंट ले आते हैं। और यहां उसको बिछा देते हैं। इससे पर्वत पर चढ़ने वालों के लिए थकने पर थोड़ा बैठने की जगह बन गई है।
जड़ी-बूटियाँ
इस पर्वत के इर्द-गिर्द बहुत सी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ देखी जा सकती हैं। शतावर और अश्वगंधा खासकर यहां बहुत अच्छी मात्रा में हैंं। शिशुपाल पर्वत को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किए जाने की तैयारियां शुरू हो ही चुकी हैं हालांकि पहले से भी यहां पर्यटक आते रहे हैं। लेकिन आगे सुविधाएं और बेहतर होंगी। यदि आप भी शिशुपाल पर्वत की ट्रिप प्लान करते हैं तो आप छत्तीसगढ़ के महासमुंद रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं। या फिर विवेकानंद हवाई अड्डे, रायपुर तक आने के बाद कैब से आगे का सफ़र कर सकते हैं।